Tuesday, March 31, 2020

1400 साल पहले जो पैगम्बर पैदा हुए उनके अम्मी अब्बा कौन-सा धर्म मानते थे ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

Saturday, March 14, 2020

भारत के मुसलमान पाकिस्तान के मैच जीतने पर खुश क्यों होते है, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे क्यों लगाते हैं ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

भारत के मुस्लमान अपनी दस पीढीयों के नाम बताये अगर वे हिन्दू धर्म को छोड़कर मुस्लिम नहीं बने हैं तो ?

प्रश्न के शेष भाग : अपने पिता , दादा,  परदादा , आदि का नाम बताएं


इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

Friday, March 6, 2020

इस्लाम में “मुता निकाह ” और "मिस्यार निकाह" नाम से प्रथा चालू है इसका क्या मतलब है ? क्या इसे वेश्यावृति कहना सही नहीं होगा ?

उत्तर : इस्लाम में “मुता निकाह” नाम से एक प्रथा चालू है | किसी भी स्त्री को पैसे देकर थोड़े समय के लिए कुछ घंटों या दिनों के लिए बीबी बना लेना और उससे विषयभोग करना तथा फिर सम्बन्ध विच्छेद करके त्याग देना “मुता निकाह ” कहलाता है |

एक मर्द कितनी ही औरतों से मुता कर सकता है, इससे स्पष्ट है की “इस्लाम में नारी का महत्व केवल पुरुष की पाशविक वासनाओं की पूर्ति करना मात्र है आश्चर्य है की जिस इस्लाम मजहब में मुता जैसी गन्दी प्रथा चालु है | उस पर भी वह नारी के सम्मान की इस्लाम में दुहाई देने का दुःसाहस करते है| यह इस्लाम का मजहबी रिवाज है | अय्याशी के लिए मुता करने पर औरत उस मर्द से अपनी मेहर (विवाह की ठहरौनी की रकम) या (फीस) मांगने की भी हकदार नहीं होती है | यदि मुता के दिनों वा घंटों में विषयभोग करने से उस स्त्री को गर्भ रह जावे तो उसकी उस मर्द पर कोई जिम्मेवारी नहीं होती है | मुता निकाह की अवधि खत्म होने के बाद महिला का संपत्ति में कोई हक नहीं होता है और ना ही वो पति से जीविकोपार्जन के लिए कोई आर्थिक मदद मांग सकती जबकि सामान्य निकाह में महिला ऐसा कर सकती है.


मिस्यार निकाह (ट्रैवेलर्स मैरिज) 

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

Tuesday, March 3, 2020

मुस्लिम देशों (पाकिस्तान बांग्लादेश) में अल्पसंख्यकों की जनसंख्या कम क्यों होती जा रही है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

क्या ईश्वर और अल्लाह एक ही है ?

ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं।
१) ईश्वर सर्वव्यापक (omnipresent) है, जबकि अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है.
२) ईश्वर सर्वशक्तिमान (omnipotent) है, वह कार्य करने में किसी की सहायता नहीं लेता, जबकि अल्लाह को फरिश्तों और जिन्नों की सहायता लेनी पडती है.
३) ईश्वर न्यायकारी है, वह जीवों के कर्मानुसार नित्य न्याय करता है, जबकि अल्लाह केवल क़यामत के दिन ही न्याय करता है, और वह भी उनका जो की कब्रों में दफनाये गए हैं.
४) ईश्वर क्षमाशील नहीं, वह दुष्टों को दण्ड अवश्य देता है, जबकि अल्लाह दुष्टों, बलात्कारियों के पाप क्षमा कर देता है. मुसलमान बनने वाले के पाप माफ़ कर देता है।
५) ईश्वर कहता है, "मनुष्य बनों" मनु॑र्भव ज॒नया॒ दैव्यं॒ जन॑म् - ऋग्वेद 10.53.6,
जबकि अल्लाह कहता है, मुसलमान बनों सूरा-2, अलबकरा पारा-1, आयत-134,135,136
६) ईश्वर सर्वज्ञ है, जीवों के कर्मों की अपेक्षा से तीनों कालों की बातों को जानता है,जबकि अल्लाह अल्पज्ञ है, उसे पता ही नहीं था की शैतान उसकी आज्ञा पालन नहीं करेगा, अन्यथा शैतान को पैदा क्यों करता?
७) ईश्वर निराकार होने से शरीर-रहित है, जबकि अल्लाह शरीर वाला है,एक आँख से देखता है.
मैंने (ईश्वर) ने इस कल्याणकारी वेदवाणी को सब लोगों के कल्याण के लिए दिया हैं - यजुर्वेद 26/
''अल्लाह 'काफिर' लोगों (गैर-मुस्लिमो ) को मार्ग नहीं दिखाता'' (10.9.37 पृ. 374) (कुरान 9:37) .
८- ईशवर कहता है सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
देवां भागं यथापूर्वे संजानाना उपासते।-(ऋ० 10/191/2)
अर्थ:-हे मनुष्यो ! मिलकर चलो,परस्पर मिलकर बात करो। तुम्हारे चित्त एक-समान होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार पूर्व विद्वान,ज्ञानीजन सेवनीय प्रभु को जानते हुए उपासना करते आये हैं,वैसे ही तुम भी किया करो।
क़ुरान का अल्ला कहता है ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' (गैर-मुस्लिमो) से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सखती पायें।'' (11.9.123 पृ. 391) (कुरान 9:123) .
९- अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभाय ।-(ऋग्वेद 5/60/5)
अर्थ:-ईश्वर कहता है कि हे संसार के लोगों ! न तो तुममें कोई बड़ा है और न छोटा।तुम सब भाई-भाई हो। सौभाग्य की प्राप्ति के लिए आगे बढ़ो।
''हे 'ईमान' लाने वालो (केवल एक आल्ला को मानने वालो ) 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक (अपवित्र) हैं।'' (10.9.28 पृ. 371) (कुरान 9:28)
१० क़ुरान का अल्ला अज्ञानी है वे मुसलमानों का इम्तिहान लेता है तभी तो इब्रहीम से पुत्र की क़ुर्बानी माँगीं। वेद का ईशवर सर्वज्ञ अर्थात मन की बात को भी जानता है उसे इम्तिहान लेने की अवशयकता नही।
११ अल्ला जीवों के और काफ़िरों के प्राण लेकर खुश होता है लेकिन वेद का ईशवर मानव व जीवों पर सेवा भलाई दया करने पर खुश होता है। ऐसे तो अनेक प्रमाण हैं, किन्तु इतने से ही बुद्धिमान लोग समझ जायेंगे की ईश्वर और अल्लाह एक नहीं हैं ।










इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

दारुल हरब और दारुल इस्लाम क्या है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

अल ताकिया क्या होता है ?

उत्तर : इस्लाम को फ़ैलाने के लिए गैर मुस्लिम लोगो को धोखा देना उनसे झूठ बोलना इस्लाम में जायज है  इसे अल्ताकिया कहते हैं | इसके लिए चाहे हाथ में कलावा बंधना पड़े , या दोस्ताना व्यवहार का दिखावा करना पड़े  ये सब जायज है अगर इसका उद्देश्य इस्लाम का प्रचार प्रसार है | 

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

मिशन "गजवा ए हिन्द" क्या है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

मोहमद के पिता का नाम व् धर्म क्या था ?

Answer from google : Prophet Muhammad s/o Abdullah ibn Abd al-Muttalib  and Āminah bint Wahb s/o Abdul-Muttalib ibn Hashim and Fatimah bint Amr

Date of Death of Muhammad's Father :   570-571 AD / 53-52 BH (aged 24-25) Medina,
Date of birth of  Muhammad                : 22 April 571 AD


मोहमद के पिता का   धर्म क्या था ? 


इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

ज्यादातर आतंकवादी मुस्लिम क्यों होते हैं ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

काफिर कौन है और इस्लाम में इसकी क्या सजा है

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

जिहाद क्या होता है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

55 वर्ष के मुहमद ने क्या 9 साल की आयशा से शादी की थी ? क्या आप अपनी 9 वर्ष की बेटी की शादी इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति से करेंगे

प्रश्न : 55 वर्मोष के मुहमद ने क्या 9 साल की आयशा  से शादी की थी ?  क्या आप अपनी 9 वर्ष की बेटी की शादी इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति से करेंगे | क्योंकि हमे अपने आदर्श पूर्वजो का अनुसरण करना चाहिये |




इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

भारत के मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू क्यों थे ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

मुस्लमान अश्वद नाम के पत्थर की पूजा क्यों करते हैं ? क्या ये मूर्ति पूजा नहीं है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

भारत और पकिस्तान के मुसलमानों को अरब के लोग “अलहिंद मसकीन” क्यों कहते हैं

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

इस्लाम ने नफरत और मारकाट के अलावा क्या दिया ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

मुस्लिम देशो में भी इतनी मार काट क्यों है वहां तो RSS और बजरंग दल भी नहीं है ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

शिया और सुन्नी मुस्लमान होते हुए भी आपस में क्यों लड़ते हैं ?

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

कुरान में नफरत फैलाने वाली अनेकों खतरनाक आयतें क्यों है ?

श्री इन्द्रसेन (तत्कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु. मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र.1966) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा, जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा153A और 256A के अन्तर्गत (F.I.R. No.237/83U/S235A, 1 होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली) में मुकदमा चलाया गया। जब दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कुरान की चौबीस आयतों को बताया इंसानियत के लिए सबसे खतरनाक। 

 (1)जब हराम के महीने बीत जाऐं, तो 'मुश्रिको' को जहाँ-कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घातकी जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे 'तौबा' कर लें 'नमाज' कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।'' (पा० 10, सूरा. 9, आयत 5,2 ख पृ. 368)

(2)''हे 'ईमान' लाने वालो! 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।'' (10/9/28 पृ. 371)

(3) ''निःसंदेह 'काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।'' (5/4/101 पृ. 239)

(4) ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुममें सख्ती पायें।'' (11/9/123 पृ. 391)

(5) ''जिन लोगों ने हमारी ''आयतों'' का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं'' (5/4/56 पृ. 231)

(6) ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को अपना मित्र मत बनाओ यदि वे ईमान की अपेक्षा 'कुफ्र' को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे ही लोग जालिम होंगे'' (10/9/23 पृ. 390)

(7)''अल्लाह 'काफिर' लोगों को मार्ग नहीं दिखाता'' (१०.९.३७ पृ. ३७४)

(8)' 'हे 'ईमान' लाने वालो! उन्हें (किताब वालों) और काफिरों को धोखे से अपना मित्र बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम 'ईमान' वाले हो।'' (6/5/56 पृ. 268)

(9)''फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।'' (22/33/61 पृ. 759)

(10) ''(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम अल्लाह के सिवा पूजते थे 'जहन्नम' का ईधन हो। तुम अवश्य उसके घाट उतरोगे।

(11)'और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके 'रब' की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।'' (21/32/22 पृ. 736)

(12)'अल्लाह ने तुमसे बहुत सी 'गनीमतों' का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,'' (26/48/20 पृ. 943)

(13)- ''तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ'' (10/8/69 पृ. 359)

(14) ''हे नबी! 'काफिरों' और 'मुनाफिकों' के साथ जिहाद करो, और उन पर सखती करो और उनका ठिकाना 'जहन्नम' है, और बुरी जगह है जहाँ पहुँचे'' (28/66/9 पृ. 1055)

(15) 'तो अवश्य हम 'कुफ्र' करने वालों को यातना का मजा चखायेंगे, और अवश्य ही हम उन्हें सबसे बुरा बदला देंगे उस कर्म का जो वे करते थे।'' (24/41/27 पृ. 865)

(16) ''यह बदला है अल्लाह के शत्रुओं का ('जहन्नम' की) आग। इसी में उनका सदा का घर है, इसके बदले में कि हमारी 'आयतों' का इन्कार करते थे।'' (24/41/28 पृ. 865)

(17) ''निःसंदेह अल्लाह ने 'ईमानवालों' (मुसलमानों) से उनके प्राणों और उनके मालों को इसके बदले में खरीद लिया है कि उनके लिए 'जन्नत' हैः वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।'' (11/9/111पृ. 388)

(18) ''अल्लाह ने इन 'मुनाफिक' (कपटाचारी) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और काफिरों से 'जहन्नम' की आग का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत की और उनके लिए स्थायी यातना है।'' (10/9/68 पृ. 379)

(19) ''हे नबी! 'ईमान वालों' (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ तो एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।'' (10/8/65 पृ. 358)

(20)- ''हे 'ईमान' लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।'' (6/5/51 पृ. 267)

(21) ''किताब वाले'' जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं न अन्तिम दिन पर, न उसे 'हराम' करते हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन को अपना 'दीन' बनाते हैं उनकसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से 'जिजया' देने लगे।'' (10/9/29 पृ. 372)

(22)''फिर हमने उनके बीच कयामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (6/5/14 पृ. 260)

(23)''वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफिर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओः तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें तो उन्हें जहाँ कहीं पाओं पकड़ों और उनका वध (कत्ल) करो। और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।'' (5/4/89 पृ. 237)

(24) ''उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले मेंतुम्हारी सहायता करेगा, और 'ईमान' वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा'' (10/9/14 पृ. 369)


मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने 31 जुलाई 1986 को फैसला सुनाते हुए लिखाः ''मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने की सम्भावना है।'' (ह. जेड. एस. लोहाट, मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली दिनांक 31/7/1986)



इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

मुसलमानों की माँ बहन के साथ होने वाला हलाला और तीन तलाक क्या होता है और ये जायज कैसे हैं ?



इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें

कुरान में धरती चपटी क्यों है ? (कुरान 71.19 , 78.6, 79.30, 88.20)



भूगोल = भू + गोल

इस्लाम के जानकरों से अनुरोध है की  अपना उत्तर कमेंट बॉक्स में विज्ञानिक आधार सहित दें